क्यों अलग हो गए Hero और HONDA
क्यों अलग हो गए Hero और HONDA
हीरो की शुरुआतः साइकिल से मोटरसाइकिल तक का सफर
हीरो की कहानी शुरू होती है साल 1956 से, जब बृजमोहन लाल मुंजाल ने एक छोटी सी साइकिल बनाने वाली कंपनी की नींव रखी। धीरे-धीरे हीरो साइकिल्स ने भारत में अपनी पहचान बनाई और 1975 तक यह भारत की सबसे बड़ी साइकिल निर्माता कंपनी बन गई। साल 1986 आते-आते हीरो ने अपनी साइकिल्स को विदेशों में भी बेचना शुरू कर दिया और दुनिया की सबसे बड़ी साइकिल निर्माता कंपनी बन गई। लेकिन इसी दौरान हीरो ने देखा कि भारत में मोटरसाइकिल का बाजार तेजी से बढ़ रहा है। उस समय भारत में सिर्फ स्कूटर और मोपेड ही उपलब्ध थे, और लोगों को एक अफ़ोर्डेबल मोटरसाइकिल की जरूरत थी। हीरो ने इस गैप को भरने का फैसला किया, लेकिन समस्या यह थी कि हीरो के पास इंजन बनाने की टेक्नोलॉजी नहीं थी।
होंडा के साथ हाथ मिलायाः हीरो होंडा का जन्म
इस समस्या को हल करने के लिए हीरो ने एक विदेशी पार्टनर की तलाश शुरू की। उस समय भारत में लिबरलाइजेशन नहीं हुआ था, लेकिन सरकार ने भारतीय कंपनियों को विदेशी कंपनियों के साथ ज्वाइंट वेंचर बनाने की अनुमति दी थी। हीरो ने दुनिया की सबसे बड़ी मोटरसाइकिल निर्माता कंपनी होंडा के साथ हाथ मिलाया।
साल 1984 में हीरो और होंडा के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत हीरो बाइक की बॉडी बनाएगा और होंडा इंजन सप्लाई करेगा। इसके अलावा, दोनों कंपनियों ने एक NOC (नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट) पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत दोनों कंपनियां भविष्य में एक-दूसरे के खिलाफ कोई प्रोडक्ट लॉन्च नहीं करेंगी। हीरो होंडा की सफलताः भारत की पहली अफ़ोडेबल बाइक
1985 में हीरो होंडा ने अपनी पहली बाइक हीरो होंडा CD 100 लॉन्च की। यह बाइक भारतीय बाजार में तहलका मचा देने वाली साबित हुई। इसकी खासियत थी इसका शानदार माइलेज और अफ़ोर्डेबल प्राइस । हीरो होंडा ने अपने मार्केटिंग कैंपेन में यह टैगलाइन दी: "Fill it, Shut it, Forget it" यानी पेट्रोल भरो, इग्निशन बंद करो, और भूल जाओ।
इस बाइक ने भारत के मिडिल क्लास और लोअर मिडिल क्लास को टारगेट किया, जो एक अफ़ोर्डेबल और रिलायबल बाइक चाहते थे। हीरो होंडा की बाइक्स ने न सिर्फ शहरों में, बल्कि ग्रामीण इलाकों में भी अपनी पकड़ बनाई।
समस्याएं शुरू हुईंः होंडा का बदलता रवैया
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लेकिन यह सफलता लंबे समय तक नहीं चली। 90 के दशक में हीरो और होंडा के बीच तनाव बढ़ने लगा। होंडा एक ग्लोबल ब्रांड था और वह भारत में अपनी अलग पहचान बनाना चाहता था। हीरो होंडा के कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक, हीरो को इंटरनेशनल मार्केट में अपनी बाइक बेचने की अनुमति नहीं थी। हीरो सिर्फ नेपाल, भूटान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में ही अपनी बाइक बेच सकता था।
इसके अलावा, हीरो होंडा के प्रॉफिट का एक बड़ा हिस्सा होंडा को जाता था, जिसकी वजह से हीरो को अपनी तकनीकी क्षमता विकसित करने में दिक्कत हो रही थी। हीरो ने महसूस किया कि अगर उसे होंडा से अलग होना है, तो उसे खुद इंजन बनाने की टेक्नोलॉजी विकसित करनी होगी। समस्याएं शुरू हुईंः होंडा का बदलता रवैया
समस्याएं शुरू हुईंः होंडा का बदलता रवैया
लेकिन यह सफलता लंबे समय तक नहीं चली। 90 के दशक में हीरो और होंडा के बीच तनाव बढ़ने लगा। होंडा एक ग्लोबल ब्रांड था और वह भारत में अपनी अलग पहचान बनाना चाहता था। हीरो होंडा के कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक, हीरो को इंटरनेशनल मार्केट में अपनी बाइक बेचने की अनुमति नहीं थी। हीरो सिर्फ नेपाल, भूटान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों में ही अपनी बाइक बेच सकता था।
इसके अलावा, हीरो होंडा के प्रॉफिट का एक बड़ा हिस्सा होंडा को जाता था, जिसकी वजह से हीरो को अपनी तकनीकी क्षमता विकसित करने में दिक्कत हो रही थी। हीरो ने महसूस किया कि अगर उसे होंडा से अलग होना है, तो उसे खुद इंजन बनाने की टेक्नोलॉजी विकसित करनी होगी।
होंडा का धोखा: NOC का उल्लंघन
साल 1999 में होंडा ने भारत में अपनी अलग कंपनी होंडा मोटरसाइकिल एंड स्कूटर इंडिया स्थापित की। इसके बाद होंडा ने हीरो होंडा के समान प्राइस सेगमेंट में बाइक लॉन्च करना शुरू कर दिया। यह हीरो होंडा के साथ किए गए NOC समझौते का सीधा उल्लंघन था।
होंडा ने भारतीय बाजार में अपनी बाइक्स और स्कूटर्स (जैसे एक्टिवा) लॉन्च करके हीरो होंडा के कस्टमर्स को डिवाइड करना शुरू कर दिया। इससे हीरो होंडा को भारी नुकसान हुआ।
हीरो और होंडा का अलग होनाः एक नई शुरुआत
साल 2010 में हीरो और होंडा ने अपनी साझेदारी को समाप्त करने का फैसला किया। होंडा ने हीरो होंडा में अपने 26% शेयर 1.2 अरब डॉलर में हीरो को बेच दिए। इसके बाद हीरो ने अपनी अलग पहचान हीरो मोटोकॉर्प के तहत बनाई।
आज हीरो मोटोकॉर्प दुनिया की सबसे बड़ी मोटरसाइकिल निर्माता कंपनियों में से एक है। हीरो ने साबित कर दिया कि वह होंडा के बिन भी सफल हो सकता है। हीरो ने अपने इंजन टेक्नोलॉजी में इन्वेस्ट किया और आज उसकी बाइक्स, जैसे Splendor, Passion, Xtreme आदि, भारतीय बाजार में काफी लोकप्रिय हैं।
वहीं, होंडा ने भी अपनी अलग पहचान बना ली और उसकी Honda Activa, CB Shine, Hornet जैसी बाइक्स और स्कूटर्स भारतीय ग्राहकों को काफी पसंद आईं।
हीरो और होंडाः अलग होने के बाद का सफर और आज का दौर
दोस्तों, अब तक हमने जाना कि कैसे हीरो और होंडा की साझेदारी ने भारत को दो पहिया वाहनों की दुनिया में क्रांति ला दी, लेकिन जब यह जोड़ी टूटी तो कई सवाल खड़े हुए। आइए, अब जानते हैं कि 2010 के बाद दोनों कंपनियों ने कैसे अलग-अलग रास्ते चुने और आज कहाँ खड़ी हैं।
हीरो मोटोकॉर्पः स्वदेशी तकनीक का जलवा
अलग होने के बाद हीरो ने अपनी R&D (रिसर्च एंड डेवलपमेंट) टीम पर भारी निवेश किया। उसने होंडा पर निर्भरता खत्म करने के लिए खुद के इंजन और टेक्नोलॉजी विकसित कीं। कुछ ही सालों में हीरो ने Splendor, Passion, और HF Deluxe जैसी बाइक्स को अपग्रेड किया और नए मॉडल्स लॉन्च किए, जैसे Xtreme और Glamour
माइलेज की जादूगरीः हीरो ने भारतीय ग्राहकों की पहली पसंद "माइलेज" को ध्यान में रखते हुए अपनी बाइक्स को और भी एफिशिएंट बनाया।
इलेक्ट्रिक व्हीकल्स की ओर कदमः आज हीरो Electric Scooters और e-Bikes के साथ इलेक्ट्रिक मार्केट में भी छा गया है।
ग्लोबल एक्सपेंशनः हीरो अब लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया के 40+ देशों में अपनी बाइक्स एक्सपोर्ट कर रहा है।
LONDA
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फैक्ट अलर्ट!
2023 में हीरो मोटोकॉर्प ने 5 करोड़ बाइक्स का प्रोडक्शन पार कर लिया, जो इसे दुनिया की #1 मोटरसाइकिल निर्माता बनाता है!
होंडा का भारत में अकेला सफर
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होंडा ने भारत में अपनी अलग कंपनी Honda Motorcycle & Scooter India (HMSI) बनाकर सीधे प्रतिस्पर्धा में उतरने का फैसला किया। उसने Activa स्कूटर के साथ शहरी बाजार पर कब्जा किया और Shine, Unicorn, CBR जैसी बाइक्स लॉन्च कीं।
प्रीमियम सेगमेंट पर फोकस: होंडा ने 150cc+ बाइक्स
और एडवेंचर बाइक्स (जैसे Africa Twin) के साथ हाई-एंड मार्केट को टारगेट किया।
इलेक्ट्रिक प्लानः होंडा भी 2024 तक भारत में अपनी पहली इलेक्ट्रिक बाइक लॉन्च करने की तैयारी में है।
दिलचस्प तथ्य !
Activa ने 2017 में भारत का सबसे ज्यादा बिकने वाला टू-व्हीलर का खिताब जीता, जो पहले हीरो की Splendor के पास था ! कौन आगे निकला? हीरो vs होंडा
कमेंट बताएँ!
"आपको कौन सी कंपनी पसंद है? हीरो की स्वदेशी ताकत या होंडा की ग्लोबल टेक्नोलॉजी?"
विवाद और सबकः बिजनेस की बड़ी सी
1. निर्भरता खतरनाक: हीरो ने सीखा कि
टेक्नोलॉजी पार्टनर पर पूरी तरह निर्भर रहना भविष्य के लिए रिस्की हो सकता है।
2. ब्रांडिंग मायने रखती है: होंडा ने अलग
होकर भी भारत में अपनी ब्रांड वैल्यू बनाई, लेकिन उसके "एनओसी उल्लंघन" ने बिजनेस एथिक्स पर सवाल खड़े किए।
3. लोकल vs ग्लोबलः हीरो ने भारतीय ग्राहकों की जरूरतों को समझकर जीता, जबकि होंडा ने ग्लोबल स्ट्रैटेजी पर फोकस किया। .
क्या होता अगर ये साथ रहते?
अगर हीरो और होंडा आज भी साथ होते, तो शायदः
भारत की इलेक्ट्रिक मार्केट पर इनका दबदबा होता।
बजाज और TVS जैसी कंपनियों को ज्यादा मौके नहीं मिलते।
Activa और Splendor एक ही रूफ के नीचे होते !
आपकी राय जानना चाहते हैं!
1. क्या हीरो और होंडा को अलग होना चाहिए था, या साथ रहकर और बड़ा साम्राज्य बनाना चाहिए था?
2. आपकी फेवरेट बाइक या स्कूटर कौन सा है - हीरो स्प्लेंडर या होंडा एक्टिवा?
3. क्या हीरो इलेक्ट्रिक सेगमेंट में आगे निकल पाएगा, या होंडा का EV प्लान ज्यादा दमदार होगा?
UNDA
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